
नीमच | नीमच जिले में तीन विधानसभा क्षेत्र नीमच, मनासा और जावद आती है। 2018 के विधानसभा चुनाव में तीनों ही सीटों पर बीजेपी प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। इसके आधार पर नीमच को बीजेपी का गढ़ कहा जा सकता है। मालवा क्षेत्र का कस्बा नीमच राजस्थान से सटा हुआ है। ब्रिटिश काल में नीमच ग्वालियर रियासत की एक बड़ी ब्रिटिश छावनी थी। यहाँ की मंडी भी देश की बड़ी मंडियों में शामिल है|
मंदसौर जिला का हिस्सा रहा नीमच 6 जुलाई 1998 को एक नए जिले के रूप में अस्तित्व में आया। जब भी प्रदेश में किसान अभियान पर गोली चलने की बात होती है तो उसके प्रभावित जिले में नीमच नाम भी आता है। यहां मुद्दों के साथ प्रत्याशियों की छवि और चेहरों का चुनाव में अहम भूमिका होती है। उद्योगों की कमी और बेरोजगारी के साथ किसानों को फसल के उचित दाम न मिल पाना यहां के प्रमुख चुनावी मुद्दे है।
नीमच विधानसभा क्षेत्र
नीमच विधानसभा सीट सामान्य सीट है, जहां पर बीजेपी का दबदबा है। भाजपा यहां 2003 से चुनाव जीतती आ रही है। 2003, 2008, 2013 और 2018 में यहां से बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। इलाके में ओबीसी समुदाय का वोटर्स अधिक है, ओबीसी वर्ग में भी बात की जाए तो गुर्जर-पाटीदार और सौंधिया समाज प्रमुख है। ब्राह्मण वर्ग के वोटर्स भी चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते है।
1957 में कांग्रेस से सीताराम जाजू ,1962 में जनसंघ से खुमान सिंह ,1967 में जनसंघ से खुमान सिंह ,1972 में कांग्रेस से रघुनंदन प्रसाद वर्मा ,1977 में जनता पार्टी से कन्हैयालाल डूंगरलाल ,1980 में कांग्रेस से रघुनंदन प्रसाद वर्मा ,1985 में कांग्रेस से संपतसरूप सीताराम जाजू ,1990 में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी ,1993 में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी ,1998 में कांग्रेस से नंदकिशोर पटेल ,2003 में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार ,2008 में बीजेपी से खुमान सिंह शिवाजी,2013 में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार,2018 में बीजेपी से दिलीप सिंह परिहार
मनासा विधानसभा सीट
मनासा विधानसभा सीट में गुर्जर -गायरी,पाटीदार व बंजारा समाज का दबदबा है। जो बीजेपी का पुख्ता वोट बैंक माना जाता है। इन समाज के मतदाता किसी भी राजनैतिक दल के प्रत्याशी को हराने और जिताने में अहम भूमिका अदा करता है। मनासा विधानसभा सीट पर बिजली पानी शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा के कई मुद्दें हैं। क्षेत्र का दुर्भाग्य कहे की दोनों दलों से यहाँ मंत्री भी रहे है फिर विकास की गति बहुत धीमी रही| वही वर्तमान विधायक अनिरुद्ध मारू 25954 वोटो से जीते हुए भी है वही क्षेत्र के लिए पेयजल योजना वरदान साबित होगी |वही तहसील मुख्यालय पर 100 बेड का अस्पताल भी लगभग बनकर तेयार हो चुका है |
1967 में कांग्रेस से बालकवि बैरागी,1972 में कांग्रेस से सूरजमल तुगनावत
1977 में जनता पार्टी से रामचंद्र बसेर, 1980 में कांग्रेस से बालकवि बैरागी ,1985 में कांग्रेस से नरेंद्र नाहटा, 1990 में बीजेपी के राधेश्याम लढ़ा,1993 में कांग्रेस के नरेंद्र नाहटा,1998 में कांग्रेस से नरेंद्र नाहटा,2003 में बीजेपी से कैलाश चावला भाजपा ,2008 में कांग्रेस से विजेंद्र सिंह मालाहेड़ा ,2013 में बीजेपी से कैलाश चावला,2018 में बीजेपी से अनिरुद्ध (माधव) मारू
जावद विधानसभा सीट
जावद को पूर्व सीएम वीरेंद्र कुमार सकलेचा की सीट माना जाता है। उनके बेटे ओमप्रकाश सखलेचा 2003 से लगातार चार बार यहां से चुनाव जीत चुके है। जावद को बीजेपी का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर ज्यादातर मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में ही होता है। कांग्रेस को जावद में 1998 में जीत दर्ज हुई थी, उसके बाद आज तक उसे यहां जीत नसीब नहीं हुई है।
जातीय समीकरण की बात की जाए तो सीट पर धाकड़ जाति के वोटर्स सबसे अधिक है। यहां धाकड़ 30 फीसदी,17 फीसदी आदिवासी है, जो निर्णायक मोड़ में होते है। वहीं पाटीदार, ब्राह्मण, राजपूत मतदाताओं की संख्या बराबर है। इसके अलावा 18 फीसदी अल्पसंख्यक वोटर्स है। जो चुनाव को किसी भी दीशा में मोड़ सकते है।
उद्योगों की कमी के चलते यहां बेरोजगारी एक प्रमुख समस्या है। सड़क परिवहन की कनेक्टिविटी भी एक समस्या है। स्वास्थ्य सुविधा, शिक्षा व्यवस्था से इलाका हमेशा जूझता रहा है। कांग्रेस को यहां सकलेचा के सामने मजबूत चेहरे की तलाश है। फिलहाल सकलेचा शिवराज सरकार में मंत्री भी है |
1972 में कांग्रेस से कन्हैयालाल नागौरी,1977 में जनता पार्टी से वीरेंद्र सखलेचा ,1980 में बीजेपी से वीरेंद्र सखलेचा 1985 में कांग्रेस से चून्नीलाल धाकड़, 1990 में बीजेपी से डूली चंद ,1993 में कांग्रेस से घनश्याम पाटीदार ,1998 में कांग्रेस से घनश्याम पाटीदार, 2003 में बीजेपी से ओमप्रकाश सखलेचा ,2008 में बीजेपी से ओमप्रकाश सखलेचा, 2013 में बीजेपी से ओम प्रकाश सखलेचा,2018 में बीजेपी से ओम प्रकाश सखलेचा