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स्वामी अवधेशानंद जी ने कहा कि देश का हृदय प्रदेश गुरू देने वाली धरा भी है। शंकराचार्य जी को मध्यप्रदेश में आगमन पर गुरू गोविंद पाद मिले और मध्यप्रदेश की धरती से जगतगुरू भी मिले। मुख्यमंत्री श्री चौहान को जगतगुरू ने ही इस कार्य के लिये चयनित किया। ओंकारेश्वर में शंकराचार्य की प्रतिमा की स्थापना और अद्वैत धाम की पहल मानवीय नहीं बल्कि ईश्वरीय या दैवीय संकल्प है। मुख्यमंत्री श्री चौहान अच्छे शासक, प्रशासक होने के साथ ही उच्च कोटि के उपासक भी है। मुख्यमंत्री श्री चौहान की धर्मपत्नी जीवन साथी के सद्कार्यों में सहायक बनती हैं। मध्यप्रदेश में शंकरदूत भी बनाये जा रहे हैं। अद्धैत दर्शन के संदेश को समाज तक पहुँचाने वाले युवा-उत्प्रेरक और प्रचारक शिविरों के माध्यम से तैयार किये जा रहे हैं। अवधेशानंद जी ने आशा व्यक्त की कि मध्यप्रदेश सेवा कार्यों में अग्रसर बना रहेगा।
हरिद्वार के परमानंद गिरि जी ने कहा कि आज का दिन प्रसन्नता का है। यह दिन सिर्फ भारतीयों के लिये नहीं सम्पूर्ण विश्व के लिये महत्वपूर्ण है। युवाओं द्वारा वेदांत का प्रचार हो रहा है, आज मनुष्य छोटी-छोटी बातों में फँसा हुआ है। इन छोटी बातों को जड़ से उखाड़ फेंकना है अर्थात इन्हें समाप्त कर एकता और वेदांत के विचार को प्रचारित करना होगा।
वरिष्ठ विचारक श्री सुरेश सोनी ने कहा कि झंझावातों के बाद भी भारत आगे बढ़ रहा है। दीर्घ काल के बाद भारत "स्व" को अभिव्यक्त कर रहा है। भारत की सांस्कृतिक चेतना और आध्यात्मिक परम्परा के प्रति स्थानों का विकास हो रहा है। केदारनाथ, अयोध्या, काशी और उज्जैन में महाकाल लोक से राष्ट्रवासियों का ध्यान आकर्षित हुआ है। नागरिकों की आशा और आंकाक्षा है कि देश एक हो, अद्वैत का सिद्धान्त प्रचारित करने के प्रयास सराहनीय हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान इसके लिये साधुवाद के पात्र हैं। ओंकारेश्वर की भौतिक प्रतिमा लोगों के आध्यात्मिक मानस तक पहुँचेगी। संतों की तपस्या और सिद्धान्त हमारे व्यवहार में व्यक्त होंगे, इसके चिन्ह दिखाई दे रहे हैं। आज अद्वैत के विचार को जीवन में उतारने की आवश्यकता है। ओंकारेश्वर का प्रकल्प एक गंगोत्री के समान है जो जल की धारा को बढ़ाते हुए महासागर के रूप में सामने आयेगा। संतों की प्रेरणा और आशीर्वाद मिल जाने से यह साकार होगा। ब्रह्मोत्सव जी-20 के सन्दर्भ में एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के विचार को भी बल मिला है।